इंफोसिस ने अपनी हाइब्रिड कार्य नीति में बदलाव करते हुए कर्मचारियों के लिए मार्च 10, 2025 से प्रति माह 10 दिन कार्यालय से कार्य करना अनिवार्य किया है। इस नई व्यवस्था के तहत अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए सिस्टम इंटरवेंशन्स लागू किए जाएंगे।

- इंफोसिस का नया फैसला: महीने में 10 दिन ऑफिस, सिस्टम ट्रैकिंग से होगी मॉनिटरिंग
- 10 मार्च से लागू होगा नियम, ईमेल के जरिए कर्मचारियों को भेजा गया अलर्ट
- पहले के हाइब्रिड मॉडल (3 दिन/सप्ताह) से क्यों बढ़ाई गई ऑफिस की अनिवार्यता?
- “काम की गुणवत्ता” या “कर्मचारी प्रतिधारण”? कंपनी के तर्कों पर गहराई से विश्लेषण
- कर्मचारियों की आवाज़: सोशल मीडिया पर ट्रेंड हुआ #InfyWorkFromOffice, शिकायतों का सिलसिला
- TCS, Wipro, और HCL के नियमों से तुलना: किसकी पॉलिसी ज्यादा लचीली?
- भविष्य की झलक: क्या IT सेक्टर में WFH का दौर खत्म हो रहा है?

इंफोसिस का वर्क कल्चर और नई नीति का ऐलान
कोविड-19 महामारी के दौरान, वर्क फ्रॉम होम (WFH) एक सामान्य प्रथा बन गई थी, जिससे कर्मचारियों को लचीलापन और सुरक्षा मिली। हालांकि, जैसे-जैसे परिस्थितियाँ सामान्य हो रही हैं, कंपनियाँ अपनी कार्य नीतियों में बदलाव कर रही हैं। भारत की अग्रणी आईटी कंपनी, इंफोसिस, ने भी अपनी हाइब्रिड कार्य नीति में महत्वपूर्ण संशोधन किए हैं। इस ब्लॉग में, हम इंफोसिस की नई वर्क फ्रॉम ऑफिस (WFO) नीति, इसके प्रभाव, और कर्मचारियों के लिए इसके निहितार्थों पर चर्चा करेंगे। 10 मार्च 2024 को इंफोसिस के कर्मचारियों के इनबॉक्स में एक ईमेल ने हलचल मचा दी। कंपनी ने घोषणा की कि अब सभी एम्प्लॉयी को महीने में कम से कम 10 दिन ऑफिस आना अनिवार्य होगा। यह नियम पहले के हाइब्रिड मॉडल (3 दिन/सप्ताह) से कहीं ज्यादा सख्त है। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, कंपनी ने कर्मचारियों की उपस्थिति ट्रैक करने के लिए सिस्टम इंटरवेंशन्स भी लागू किए हैं। लेकिन सवाल यह है: क्या यह फैसला कर्मचारियों के हित में है, या कंपनी की प्रोडक्टिविटी बढ़ाने का जतन? आइए, विस्तार से समझते हैं।
नई पॉलिसी के मुख्य नियम: 10 दिन ऑफिस, नहीं तो क्या होगा?
इंफोसिस के ईमेल के मुताबिक:
- अनिवार्य उपस्थिति: प्रत्येक महीने 10 दिन ऑफिस आना जरूरी।
- सिस्टम ट्रैकिंग: स्वाइप कार्ड/बायोमेट्रिक सिस्टम से लॉगिन डेटा मॉनिटर किया जाएगा।
- प्रोजेक्ट एक्सेप्शन: क्लाइंट-स्पेसिफिक भूमिकाओं में लचीलापन, लेकिन मैनेजर की मंजूरी जरूरी।
कंपनी ने साफ किया है कि नियमों का पालन न करने वालों के खिलाफ कार्रवाई हो सकती है। हालाँकि, यह “कार्रवाई” किस रूप में होगी, इस पर अभी कोई स्पष्टता नहीं दी गई है।
3. पॉलिसी बदलाव के पीछे का लॉजिक: इंफोसिस का पक्ष
कंपनी के हाई-मैनेजमेंट का मानना है कि ऑफिस में शारीरिक उपस्थिति से:
- क्रिएटिव कॉलैबरेशन बढ़ेगा: ब्रेनस्टॉर्मिंग सेशन और टीम मीटिंग्स प्रोजेक्ट क्वालिटी सुधारेंगे।
- नए कर्मचारियों को मेंटरशिप: फ्रेशर्स ऑन-द-जॉब ट्रेनिंग से स्किल्स डेवलप कर पाएंगे।
- कल्चरल कनेक्शन: इंफोसिस के “लर्न एंड ग्रो” वाले वातावरण को बनाए रखने के लिए ऑफिस जरूरी है।
लेकिन क्या ये तर्क कर्मचारियों को समझ आ रहे हैं? ट्विटर पर एक यूजर ने लिखा: “WFH में हमने रिकॉर्ड प्रोडक्टिविटी दिखाई, फिर ऑफिस जाने पर ज़ोर क्यों?”
4. कर्मचारियों की प्रतिक्रिया: खुशी या निराशा?
टीओआई की रिपोर्ट और सोशल मीडिया के अनुसार, कर्मचारियों की प्रतिक्रिया मिली-जुली है:
- शहरों से दूर रहने वाले एम्प्लॉयी: बेंगलुरु, हैदराबाद जैसे महंगे शहरों में रहने और कम्यूटिंग का खर्च बोझ बन रहा है।
- महिला कर्मचारी: घरेलू जिम्मेदारियों के बीच ऑफिस की अनिवार्यता चुनौतीपूर्ण।
- वरिष्ठ डेवलपर्स: “टेक्निकल काम के लिए ऑफिस जरूरी नहीं, यह सिर्फ माइक्रोमैनेजमेंट है।”
वहीं, कुछ कर्मचारियों का मानना है कि ऑफिस जाने से उन्हें नेटवर्किंग और प्रमोशन के अवसर मिलेंगे।
5. अन्य IT कंपनियों से तुलना: कहाँ क्या नियम?
- TCS: “25×25” मॉडल – 2025 तक सिर्फ 25% कर्मचारी ऑफिस आएँगे, लेकिन फिलहाल 5 दिन/सप्ताह अनिवार्य।
- Wipro: हाइब्रिड मॉडल (50% कैपेसिटी), लेकिन टीम लीडर डिसीजन फाइनल।
- HCL: प्रोजेक्ट-बेस्ड पॉलिसी – क्लाइंट की जरूरत के हिसाब से ऑफिस/वर्क फ्रॉम होम।
इंफोसिस का 10-दिन वाला नियम इन सबके मुकाबले कम लचीला लग रहा है, खासकर उन कर्मचारियों के लिए जो दूसरे शहरों में रहकर काम कर रहे हैं।
6. एक्सपर्ट्स की राय: क्या यह सही वक्त है ऑफिस वापसी का?
HR कंसल्टेंट प्रियंका मेहरा कहती हैं: “IT सेक्टर में WFH का ट्रेंड टिकाऊ है, लेकिन कंपनियाँ इसे ‘कर्मचारी के फायदे’ की बजाय ‘कॉस्ट-कटिंग’ के नज़रिए से देख रही हैं। इंफोसिस का कदम शायद अट्रिशन रेट कम करने और कल्चरल इंटीग्रिटी बनाए रखने की कोशिश है।”
7. भविष्य क्या छुपाए है? WFH vs ऑफिस की लड़ाई
एनालिटिक्स फर्म गार्टनर के अनुसार, 2025 तक 60% आईटी कंपनियाँ हाइब्रिड मॉडल को ही प्राथमिकता देंगी। इंफोसिस का यह कदम शायद एक समझौता है: कर्मचारियों की मांग और कंपनी के हितों के बीच संतुलन।
8. निष्कर्ष: क्या यह नीति टिकाऊ है?
इंफोसिस का नया नियम कर्मचारियों और मैनेजमेंट दोनों के लिए एक टेस्ट केस बन गया है। अगर प्रोडक्टिविटी बढ़ती है और अट्रिशन कम होता है, तो यह पॉलिसी सफल मानी जाएगी। नहीं तो, कर्मचारी फिर से “क्वायट क्विटिंग” या जॉब स्विच की राह पकड़ सकते हैं।